शनिवार, 14 जनवरी 2012

पापा को भी प्यार चाहिए -सतीश सक्सेना


निम्न रचना में व्यथा वर्णन है उन बड़ों का जो अक्सर अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगते हैं ! कृपया किसी व्यक्तिविशेष से न जोड़ें ...
महसूस करें बुजुर्गों की व्यथा को, जो कभी कही नहीं जाती ...


शक्ति चुक गयी चलते चलते 
भूखे प्यासे, पैर न उठते  !
जीवन की संध्या में थक कर 
आज बैठकर सोंच रहा  हूँ !
क्या खोया क्या पाया मैंने , परम पिता का वंदन करते !
वृन्दाबन से मन मंदिर में,मुझको भी घनश्याम चाहिए !

बचपन में ही छिने खिलौने 
और छिनी माता की लोरी ,
निपट अकेले शिशु, के आंसू
की,किस को परवाह रही थी !
बिना  किसी  की उंगली पकडे , जैसे तैसे चलना सीखा  !
ह्रदयविदारक उन यादों से,मुझको भी अब मुक्ति चाहिए  ! 
  
रात   बिताई , जगते जगते 
बिन थपकी के सोना कैसा ?
ना जाने कब नींद  आ गयी, 
बिन अपनों के जीना कैसा ?
खुद ही आँख पोंछ ली अपनी,जब जब भी, भर आये आंसू
आज नन्द के राजमहल में , मुझको भी   वसुदेव चाहिए !


बरसों बीते ,चलते चलते ! 
भूखे प्यासे , दर्द छिपाते  !
तुम सबको मज़बूत बनाते 
"मैं हूँ ना "अहसास दिलाते !
कभी अकेलापन, तुमको अहसास न  हो, जो मैंने झेला ,
जीवन की आखिरी डगर में,मुझको भी एक हाथ चाहिए !


जब जब थक कर चूर हुए थे ,
खुद ही झाड बिछौना सोये 
सारे दिन, कट गए भागते 
तुमको गुरुकुल में पंहुचाते 
अब पैरों पर खड़े सुयोधन !सोंचों मत, ऊपर से निकलो !
वृद्ध पिता की भी शिक्षा में, एक  नया अध्याय चाहिए !


सारा जीवन कटा भागते 
तुमको नर्म बिछौना लाते  
नींद तुम्हारी ना खुल जाए
पंखा झलते  थे , सिरहाने  
आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल  हुआ है  !
अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

रविवार, 1 जनवरी 2012

शुभकामनायें नववर्ष की


नया वर्ष आ गया; वर्ष 2012 आ गया; पुराना वर्ष 2011 चला गया। इस समय समाचारों में लोगों का उत्साह दिखाया जा रहा है। घर के कमरे में बैठे-बैठे हमें यहां उरई में खुशी में फोड़े जा रहे पटाखों का शोर सुनाई दे रहा है। लोगों की खुशी को कम नहीं करना चाहते, हमारे कम करने से होगी भी नहीं।

कई सवाल बहुत पहले से हमारे मन में नये वर्ष के आने पर, लोगों के अति-उत्साह को देखकर उठते थे कि इतनी खुशी, उल्लास किसलिए? पटाखों का फोड़ना किसलिए? रात-रात भर पार्टियों का आयोजन और हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी किसलिए? कहीं इस कारण से तो नहीं कि इस वर्ष हम आतंकवाद की चपेट में नहीं आये? कहीं इस कारण तो नहीं कि हम किसी दुर्घटना के शिकार नहीं हुए? कहीं इस कारण तो नहीं कि हमें पूरे वर्ष सम्पन्नता, सुख मिलता रहा?

इसके बाद भी नववर्ष के आने से यह एहसास हो रहा है कि बुरे दिन वर्ष 2011 के साथ चले गये हैं और नववर्ष अपने साथ बहुत कुछ नया लेकर ही आयेगा। देशवासियों को सुख-समृद्धि-सफलता-सुरक्षा आदि-आदि सब कुछ मिले। संसाधनों की उपलब्धता रहे, आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।

कामना यह भी है कि इस वर्ष में बच्चियां अजन्मी न रहें; कामना यह भी है कि महिलाओं को खौफ के साये में न जीना पड़े; कामना यह भी है कैरियर के दबाव में हमारे नौनिहालों को मौत को गले लगाने को मजबूर न होना पड़े; कामना यह भी कि कृषि प्रधान देश में किसानों को आत्महत्या करने जैसे कदम न उठाने पड़ें; कामना यह भी कि भ्रष्टाचारियों की कोई नई नस्ल पैदा न होने पाये और पुरानी नस्ल का विकास न होने पाये....कितना-कितना है कामना करने के लिए....नये वर्ष के साथ होने के लिए।

आइये चन्द लम्हों के आयोजन में हजारों-लाखों रुपयों की बर्बादी कर देने के साथ-साथ इस पर भी विचार करें। इस विचार के साथ ही आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें...कामना है कि आप सभी को ये वर्ष 2012 सुख-सम्पदा-सुरक्षा-सम्पन्नता-सुकून से भरा मिले।


चित्र गूगल छवियों से साभार


बुधवार, 16 नवंबर 2011

माता-पिता की राह पर अग्रसर अक्षिता (पाखी) : ब्लागिंग हेतु मिला 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार'

(बाल दिवस, 14 नवम्बर पर विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में महिला और बाल विकास मंत्री माननीया कृष्णा तीरथ जी ने अक्षिता (पाखी) को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2011 से पुरस्कृत किया. अक्षिता इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की प्रतिभा है.यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया)



आज के आधुनिक दौर में बच्चों का सृजनात्मक दायरा बढ़ रहा है. वे न सिर्फ देश के भविष्य हैं, बल्कि हमारे देश के विकास और समृद्धि के संवाहक भी. जीवन के हर क्षेत्र में वे अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं. बेटों के साथ-साथ बेटियाँ भी जीवन की हर ऊँचाइयों को छू रही हैं. ऐसे में वर्ष 1996 से हर वर्ष शिक्षा, संस्कृति, कला, खेल-कूद तथा संगीत आदि के क्षेत्रों में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले बच्चों हेतु हेतु महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' आरम्भ किये गए हैं। चार वर्ष से पन्द्रह वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चे इस पुरस्कार को प्राप्त करने के पात्र हैं.

वर्ष 2011 के लिए 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा प्रदान किये गए. विभिन्न राज्यों से चयनित कुल 27 बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए, जिनमें मात्र 4 साल 8 माह की आयु में सबसे कम उम्र में पुरस्कार प्राप्त कर अक्षिता (पाखी) ने एक कीर्तिमान स्थापित किया. गौरतलब है कि इन 27 प्रतिभाओं में से 13 लडकियाँ चुनी गई हैं।




सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री और पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा अक्षिता (पाखी) को यह पुरस्कार कला और ब्लागिंग के क्षेत्र में उसकी विलक्षण उपलब्धि के लिए दिया गया है. इस अवसर पर जारी बुक आफ रिकार्ड्स के अनुसार- ''25 मार्च, 2007 को जन्मी अक्षिता में रचनात्मकता कूट-कूट कर भरी हुई है। ड्राइंग, संगीत, यात्रा इत्यादि से सम्बंधित उनकी गतिविधियाँ उनके ब्लाॅग ’पाखी की दुनिया (http://pakhi-akshita.blogspot.com/) पर उपलब्ध हैं, जो 24 जून, 2009 को आरंभ हुआ था। इस पर उन्हें अकल्पनीय प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। 175 से अधिक ब्लाॅगर इससे जुडे़ हैं। इनके ब्लाॅग 70 देशों के 27000 से अधिक लोगों द्वारा देखे गए हैं। अक्षिता ने नई दिल्ली में अप्रैल, 2011 में हुए अंतर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में 2010 का ’हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना का सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार’ भी जीता है।इतनी कम उम्र में अक्षिता के एक कलाकार एवं एक ब्लाॅगर के रूप में असाधारण प्रदर्शन ने उन्हें उत्कृष्ट उपलब्धि हेतु 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, 2011' दिलाया।''इसके तहत अक्षिता को भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया.

यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है और इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को इस गौरवमयी उपलब्धि पर ढेरों प्यार और शुभाशीष व बधाइयाँ !!
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मंत्री जी भी अक्षिता (पाखी) के प्रति अपना प्यार और स्नेह न छुपा सकीं, कुछ चित्रमय झलकियाँ....














बुधवार, 9 नवंबर 2011

माता-पिता के साथ बेटी का भी जलवा : ब्लागिंग हेतु मिलेगा नन्हीं अक्षिता (पाखी) को 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार'


प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. तभी तो पाँच वर्षीया नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को वर्ष 2011 हेतु राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (National Child Award) के लिए चयनित किया गया है. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री अक्षिता को यह पुरस्कार 'कला और ब्लागिंग' (Excellence in the Field of Art and Blogging) के क्षेत्र में शानदार उपलब्धि के लिए बाल दिवस, 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीर्थ जी द्वारा प्रदान किया जायेगा. इसके तहत अक्षिता को 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र दिया जायेगा.

यह प्रथम अवसर होगा, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया जायेगा. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है. फ़िलहाल अक्षिता पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा हैं और उनके इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को इस गौरवमयी उपलब्धि पर अनेकोंनेक शुभकामनायें और बधाइयाँ !!

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

पिता का बेटी को पैगाम

अवतार सिंह 'पास' पजाब के प्रगतिशील कवि थे । . जब भारत में खालिस्तानी आतंकवाद चरम सीमा पर था तब वे उस विचारधारा से जुड़े थे जो आतंकवादियों के इरादों के खिलाफ संघर्ष कर रही थी । . उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिल रहीं थीं और बाद में उनकी हत्या भी कर दी गयी । इसी दौरान उनको बेटी होने की सूचना भी मिली । उन्होंने अपनी बेटी को संबोधित करते हुए एक काव्यात्मक ख़त लिखा जो आतंक के विरुद्ध लड़ी में न केवल उनके जज्बे को प्रदर्शित करता है वरन फिरकापरस्त ताकतों को भी बेनकाब कर लोगों को जागरूक करता है। इस दृष्टि से उनकी यह कविता एक शाश्वत दस्तावेज कही जा सकती है.

बाप, का ख़त बेटी कें नाम

बेटी तेरे जनम पै है स्वागत तेरा बहुत,
दादी से तेरी मुझको समाचार ये मिला ;
लेकिन वह ज्यादा खुश आयी नहीं मुझे,
लड़का न होने का उसे शायद रहा गिला।

अफ़सोस उसकी सोच पै बिलकुल नहीं मुझे ,
लड़की के साथ भेद ये सदियों से आया है ;
जड़ इसकी पूंजीवाद है ,सामंतवाद है ,
बेशक बुराइयों का यही तो निजाम है ।

शोषितजनों की मुक्ति ही बस मेरालक्ष्य है ,
संघर्ष कर रहा हूँ मैं,जालिम निजाम से;
मै चाहता हूँ ऐसा निजाम आये हिंद में ,
इज्जत हो आदमी की जहाँ उसके काम से ।

बेटी तेरा जनम हुआ है ऐसे वक्त पर ,
लथपथ है जबकि खून से पंजाब की जमीं;
फिरकापरस्त ताकतें करती हैं साजिशें ,
कैसे रहे सुकून स पजाब की जमीं ?

फिरकापरस्त ताकतें ,काली ये ताकतें ,
ये ताकतें हैं मौत की,सूचक विनाश की ;
लोगों को मजहबों के खेमे में बाँट कर ,
गुल करना चाहती हैं सभी किरणें आस की।


लड़ते हुए इनसे मैं मर भी गया तो क्या,
इस जंग में महान शहादत तो चाहिए ;
बलिदान चाहें जितने हों चिंता नहीं ,मगर,
इन काली ताकतों को क़यामत तो चाहिए।


शायद ही तुझको दे सकूँ मै तेरा हक़,मगर,
आदर्श मेरे तेरी धरोहर हैं कीमती ;
फिरकापरस्त लोगों से तू रहना सावधान ,
इंसानियत ही दुनियां में जेवर है कीमती।

पैगाम तेरे वास्ते मेरा यही है बस ,
हिन्दू बने,न सिक्ख,न मुसलमान तू बने ;
दहलीज पर जवानी की,जब तू रखे कदम,
मजहब न तेरा कोई हो ,इन्सान तू बने ।

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

आपके माता पिता बीमार हैं ? -सतीश सक्सेना

 क्या कभी अपने माता पिता के बारे में सोंचने  की  जहमत उठाई है , कि इस उम्र में, बिना सहारे वे , अपना सही इलाज़ कैसे कर पा रहे होंगे !  क्या आपने सोचा है कि  उनके  जैसे , कमजोर असहायों वृद्धों  को, सिर्फ पैसे कमाने के लिए खुले, अस्पताल तक पंहुचना, कितना भयावह होता है  ! 


बीमार हालत में, दयनीय आँखों से डाक्टर को ताकते , ये वही हैं, जिनकी गोद में तुम सुरक्षित रहते हुए, विशाल वृक्ष बन चुके हो और ये लोग, उस वट वृक्ष से दूर ,निस्सहाय गलती हुई जड़ मात्र , जिन्हें बचाने वाला कोई नहीं ! 
खैर ! अच्छे वैभवयुक्त जीवन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं !
( उपरोक्त चित्र का इस लेख से कोई सम्बन्द्ध नहीं है , इसे सिर्फ प्रतीकात्मक मानें )