गुरुवार, 18 मार्च 2010

माता पिता की उंगली मैंने नहीं पकड़ी .... - सतीश सक्सेना

अविनाश वाचस्पति का यहाँ लिखा पहला लेख "माता पिता की उंगली श्रष्टिनियंता की होती है " का शीर्षक पढ़ कर ही आँखों में आंसू छलछला उठे, मैंने अपने बचपन में क्या गुनाह किया था कि परमपिता ने यह कठोर कदम उठाया ! शायद धर्म विवेचन में सिद्ध विद्वान् इसका उत्तर दे सकने में समर्थ हों पर जिस बच्चे से 3 वर्ष में माँ और ६ वर्ष में पिता छिन गए हों वह आज भी यह समझने  में असमर्थ है ! शायद यह क्रूर घटना किसी को भी ईश्वरीय सत्ता पर से अविश्वास कराने के लिए काफी है...


         आज के समय में ,जब मैं घर के  ७० वर्षीय भूतपूर्व मुखिया को मोहल्ले की दुकान पर ही खड़े होकर, खरीदे गए सामान में से ,जल्दी जल्दी कुछ खाते हुए देखता हूँ  तो मुझे अपने पिता याद आते हैं कि काश वे होते और मुझे उनकी सेवा का मौका मिला होता  यकीनन वे एक सुखी पिता होते ! मगर मुझ अभागे की किस्मत में यह नहीं लिखा था ..


          और क्या अपना खून देकर आपको  सींचने  वाली माँ  की स्थिति कहीं ऐसी तो नहीं  ? अगर हाँ तो निश्चित मानिए आपके साथ इससे भी बुरा होगा  !  



बुधवार, 17 मार्च 2010

माता-पिता की ऊंगली सृष्टिनियंता की होती है (अविनाश वाचस्‍पति)

संस्‍कारों के वाहक
सबके भले के चाहक
मिलती है सबको इनकी
सुमधुर वाणी से राहत।

आहत होता है कोई
जब पाता है आहट
तो दुख विषाद दूर
जाता है पलटहट।

पाता है स्‍वयं को
माता की गोद में
पिता की छाया में
ऊंगली थामे उनकी
मानो सृष्टिनियंता ने
ऊंगली अपनी थमाई है।

पुत्री हो या हो पुत्र
सबमें कृष्‍ण का चित्र
मन में बसते हैं
निर्मल भाव संतान के लिए।

दिल में दोनों के मान लो
तनिक भी भेद होता नहीं
भाव समान होते हैं
अभाव उनका होता नहीं।

माता-पिता हों साथ
तो कोई रोता नहीं
खुश रहता है सारा जग
खुशियों का बहता सोता वहीं।

प्रसन्‍नता का भंडार
गुणों का आगार
लेता है संतान में
सब कुछ आकार।

माता-पिता की वास्‍तविकता को
कर लें हम सब मन से स्‍वीकार
बुराईयों का स्‍वयं ही होता जाएगा
प्रत्‍येक मन से प्रतिकार
कर लिया हो जब मन में
माता-पिता के पावन प्रेम को अंगीकार।

मंगलवार, 16 मार्च 2010

आज का दिन विशेष है "माता-पिता" के लिए

ब्लाग पर अपने आने के बाद प्रारम्भ के दिनों में हमारा प्रयास रहा कि कुछ अन्य ब्लागों से भी जुड़कर अपने लेखन को विस्तार दिया जाये। इस क्रम में हमने कुछ ब्लाग के संचालकों को अपनी ओर से निवेदन किया। ऐसे ब्लागों की संख्या चार-छह ही रही होगी, इनमें दो-चार ने तो हमारा निवेदन स्वीकार किया और हमें भी अपने साथ जोड़ा और कुछ ने तमाम सारी आपत्तियाँ मेल के द्वारा हमें दर्ज करा कर हमारे निवेदन को ठुकरा दिया।
 
जुड़ने-जोड़ने के क्रम में हमने कई ब्लाग की सदस्यता ली और बाद में कई ब्लाग से हमें सदस्यता ग्रहण करने का न्यौता मिला। इन पूरी गतिविधियों में हमने अपने आपमें एक बात महसूस की कि एक ब्लाग ‘माँ’ नाम से माँ के पावन रूप को सबके सामने रख रहा है तो एक ब्लाग ‘पिताजी’ के नाम से पिता के स्वरूप से हम सबको रूबरू करा रहा था।
 
दोनों ब्लाग को देखा और पसंद किया किन्तु एक खटका मन में लगा रहा कि क्यों नहीं माता और पिता को एकसाथ लाया गया? संसार में माता और पिता ही हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को पहचान देते हैं, नई उड़ान देते हैं। समाज के इस रिश्ते को अलग करने का अधिकार सिर्फ मौत के पास है और किसी के पास नहीं। ऐसी हमारी सोच है। इस सोच के कारण लगा रहता कि क्यों न एक ऐसा ब्लाग बनाया जाये जो माता-पिता को एक साथ ब्लाग पर सबके साथ चलने दे।
 
ब्लाग संसार के अपने इस छोटे से सफर में ब्लाग संसार को बहुत ही करीब से देखा। बहुत कुछ सीखा और जो सीखा उसमें से थोड़ा-थोड़ा सिखाने का प्रयास किया। आप सभी से मिले प्यार-स्नेह को सभी के साथ बाँटने का प्रयास किया। इस प्रयास में हमने भी कुछ सामूहिक ब्लाग बनाये और आप सभी के स्नेह से वे बराबर गति प्राप्त किये हैं। इस तरह के ब्लाग में साहित्यिक ब्लाग ‘शब्दकार’, अपने एहसास को हम सबके बीच लाने वाला ब्लाग ‘पहला एहसास’ प्रमुख है।
 
माता-पिता के रूप को एकसाथ ब्लाग पर लाने के लिए किसी विशेष दिन का इंतजार हमेशा बना रहा। आज संयोग से हमें उस दिन का एहसास हुआ। आज माँ के शक्तिशाली रूप माँ दुर्गा के प्रारम्भ होने का दिन है, नव सम्वतसर की शुरूआत। आज का दिन हमें बड़ा ही शुभ जान पड़ा इस ब्लाग की शुरूआत के लिए। कल रात को सोते समय ही विचार किया था कि सुबह उठने के बाद सभी को शुभकामनाएँ देने के साथ-साथ इस ब्लाग के बारे में भी जानकारी देते जायेंगे। सुबह से कुछ ऐसा रहा कि लोगों को शुभकामनाएँ देते रहे और आँसू भी बहाते रहे। इस ब्लाग की शुरूआत आज से कर दी है, बस आप के स्नेह और सहयोग की आवश्यकता रहेगी। इसे आप संयोग ही कह सकते हैं कि आज हमारे पिताजी की पुण्य तिथि भी है।

आमंत्रण भेजे जा रहे हैं कृपया स्वीकार कर ब्लाग को समृद्ध करें। धन्यवाद। 

इस ब्लॉग से जुड़ने के इच्छुक महानुभाव हमें dr.kumarendra@gmail.com पर मेल भेज सकते हैं.