क्या कभी अपने माता पिता के बारे में सोंचने की जहमत उठाई है , कि इस उम्र में, बिना सहारे वे , अपना सही इलाज़ कैसे कर पा रहे होंगे ! क्या आपने सोचा है कि उनके जैसे , कमजोर असहायों वृद्धों को, सिर्फ पैसे कमाने के लिए खुले, अस्पताल तक पंहुचना, कितना भयावह होता है !
बीमार हालत में, दयनीय आँखों से डाक्टर को ताकते , ये वही हैं, जिनकी गोद में तुम सुरक्षित रहते हुए, विशाल वृक्ष बन चुके हो और ये लोग, उस वट वृक्ष से दूर ,निस्सहाय गलती हुई जड़ मात्र , जिन्हें बचाने वाला कोई नहीं !
खैर ! अच्छे वैभवयुक्त जीवन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं !
( उपरोक्त चित्र का इस लेख से कोई सम्बन्द्ध नहीं है , इसे सिर्फ प्रतीकात्मक मानें )
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010
आपके माता पिता बीमार हैं ? -सतीश सक्सेना
लेबल:
पिता,
माँ,
माता-पिता,
शुभकामनायें,
सतीश सक्सेना
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
शुक्रवार, 2 जुलाई 2010
मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है -सतीश सक्सेना
सहसपुरिया साहब ,
आज डैशबोर्ड पर नज़र पड़ते ही, अपने नाम समर्पित यह पोस्ट देख चौंक गया मैं , पता नहीं आपको क्या अच्छा लगा जो इतनी खूबसूरत ग़ज़ल भेंट दी है मुझे ! जहाँ तक मुझे याद आता है, शायद ही कभी आपकी तरफ ध्यान दे पाया मैं ! पता नहीं ऐसे नालायक दोस्त को यह कीमती तोहफा आपने क्यों दिया, हमने तो ख़ुशी ख़ुशी कबूल कर लिया शुक्रिया आपका !
खैर,
" जब कभी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है "
क्या बेहतरीन लाइनें लिखी हैं मुनव्वर राना ने ...लगता है दो लाइनों में पूरी किताब की कहानी लिख दी है, एक अम्मा ही तो है जो हर मुसीबत में साथ खड़ी नज़र आती है ! मैं कुछ ऐसे बदकिस्मत इंसानों में से एक हूँ जिसे यह प्यार नसीब ही नहीं हुआ और न मैं दुनिया की यह सबसे खूबसूरत शक्ल देख पाया ! आज भी तडपता हूँ की शायद ख्वाब में ही मेरी माँ मुझे दिख जाए उसके बाद चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए !
वे बड़े बदकिस्मत लोग हैं जो जीते जी अपनी माँ की क़द्र नहीं कर पाते ...दुनिया में खुदा को किसी ने नहीं देखा मगर जिसने हमें जन्म दिया, जिसके शरीर का खून पाकर हम इस संसार में आये उसे हमने क्या दिया ??
माँ के प्रति मुनव्वर राना की यह खूबसूरत लाइने भी , माँ के प्यार के सामने ,एक ज़र्रा भी नहीं है !
शुभकामनायें भाई जी !
सोमवार, 21 जून 2010
अपने पिता के योगदान को विस्मृत न करें
अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस पर विशेष
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अपने पिता को विस्मृत न करें
दिव्या गुप्ता जैन
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अपने पिता को विस्मृत न करें
दिव्या गुप्ता जैन
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माता-पिता का किसी भी व्यक्ति के जीवन में क्या महत्व है ये बताने की आवश्यकता नहीं है।जहाँ माँ कोख में बच्चे को अपने खून से सींचती है तो वही पिता उसे परिपक्व होने तक अपने पसीने से पालता है। एक तरफ माँ बच्चे के पालन- पोषण ढेर सारा त्याग और तपस्या के साथ करती है, तो दूसरी तरफ पिता एक मजबूत आधार की तरह हर समय सहारा देता है। इसीलिए यदि किसी परिवार में दुर्घटनावश यदि पिता की असमय म्रत्यु हो जाती है तो परिवार बिखर जाता है और बच्चे शिक्षा, सहारा, सलाह, प्रोत्साहन के आभाव में आगे नहीं बढ़ पाते।
हर पिता अपने बच्चो को अपने से ज्यादा सफल देखना चाहता है जिसके वह कठिन परिश्रम करता है।अपने शौकों पर नियंत्रण करता है। जरुरत पड़ने पर कर्ज भी लेता है। खुद छोटे से घर में रहके, साइकिल चलाके अपने बच्चो के लिए बड़े घर और गाड़ी का सपना देखता है। और उस सपने को पूरा करने के लिए अपनी पूरी जिंदगी को संघर्ष में निकल देता है। पिता वो शाख है जो अपने बच्चे की हर मुश्किल में उसका साया बन जाता है। जिस समय उसे एक कदम भी चलना भी नहीं आता उसे उँगली पकड़ के चलना सिखाता है परन्तु आजकल के बच्चे अपना फर्ज भूल गए है
इसीलिए शहर के नक़्शे में वृद्धाश्रम दिखने लगे है। जहाँ पिता अकेले पाँच बच्चो को पाल लेता है उन्हें जीवन के सारे सुख आराम देता है वही पाँच बच्चे मिलकर एक पिता को नहीं पाल पाते। कमाने की भागदौड़ में हम मॉल में लगी सेल देखने का, किटी पार्टी का, समारोह में जाने का समय तो निकल लेते हैं! लेकिन बूढ़े पिता के जोड़ों के दर्द का हाल पूछने का समय नहीं निकल पाते। यहाँ तक कि हमें उनकी दवा का खर्च भी अखरने लगता है। हम उस समय ये भूल जाते है की ये वही बरगद का पेड़ है जिसकी छाया में पलके हम बड़े हुए है। यदि उन्होंने भी उस समय अपनी ऐशोआराम में समय बिताया होता तो शायद हम इस ऊंचाई पर नहीं पहुच पाते।
आइये अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस पर अपने पिता को सम्मान दे। हमारे जीवन में उनके योगदान को याद करें। और यदि वो अभाग्यवश हमारें साथ नहीं है तो अपने बच्चो के साथ उनके योगदान की चर्चा करें।
रविवार, 9 मई 2010
तुझे सब है पता मेरी माँ
तुझे सब है पता मेरी माँ --- दिव्या गुप्ता जैन ===========================
माँ ये बात हमेशा मेरे लिए आश्चर्य का विषय रही है की तुम्हे सब कैसे पता चल जाता है! तुम कैसे मेरा चेहरा पढ़ लेती हो! मेरी घबराहट को पहचान लेती हो! 
मैं जब तुम्हारी कोख मैं पल रही थी, तभी तुमने मेरे लिए नन्हे- नन्हे लेस लगे कपडे बना लिए! तुम्हे कैसे पता चला की मैं उनमे इतनी सुन्दर दिखूगी! तुमने मिर्ची खाना बंद कर दिया की मुझे जलन होगी! नापसंद होते हुए भी तुमने हरे पत्ते वाली सब्जी खाना शुरू कर दिया की जिससे मुझे पोषण मिले! मुझे इस दुनिया मैं लाने के लिए कितना असहनीय दर्द सह लिया!
जब तुम्हारी कोख से बाहर आने के बाद मुझे उजाला अच्छा नहीं लगता था, मैं दिन मैं सोती थी और तुमने मेरे लिए अनगिनत रातें जाग कर गुजारी! मुझे सूखी जगह पर सुला कर खुद मेरी गीली जगह पर सो जाती थी!
तुम्हे कैसे मेरा चेहरा देख कर पता चल जाता था की मुझे भूख लगी है, और तुम झट से मुझे अपना दूध पिला देती थी! मुझे चोट न लगे इसलिए मेरे घुटने चलने पर तुम हमेशा मेरे आस-पास रहती थी! मुझे हमेशा काला टीका लगाती कि मुझे किसी की नज़र न लगे! मुझे थोडा सा भी बुखार होता तो रात भर मेरे लिए जागती थी!

मैं जब तुम्हारी कोख मैं पल रही थी, तभी तुमने मेरे लिए नन्हे- नन्हे लेस लगे कपडे बना लिए! तुम्हे कैसे पता चला की मैं उनमे इतनी सुन्दर दिखूगी! तुमने मिर्ची खाना बंद कर दिया की मुझे जलन होगी! नापसंद होते हुए भी तुमने हरे पत्ते वाली सब्जी खाना शुरू कर दिया की जिससे मुझे पोषण मिले! मुझे इस दुनिया मैं लाने के लिए कितना असहनीय दर्द सह लिया!
जब तुम्हारी कोख से बाहर आने के बाद मुझे उजाला अच्छा नहीं लगता था, मैं दिन मैं सोती थी और तुमने मेरे लिए अनगिनत रातें जाग कर गुजारी! मुझे सूखी जगह पर सुला कर खुद मेरी गीली जगह पर सो जाती थी!
तुम्हे कैसे मेरा चेहरा देख कर पता चल जाता था की मुझे भूख लगी है, और तुम झट से मुझे अपना दूध पिला देती थी! मुझे चोट न लगे इसलिए मेरे घुटने चलने पर तुम हमेशा मेरे आस-पास रहती थी! मुझे हमेशा काला टीका लगाती कि मुझे किसी की नज़र न लगे! मुझे थोडा सा भी बुखार होता तो रात भर मेरे लिए जागती थी!
मुझे खाना अच्छा नहीं लगता था तो तुम गुडिया से बहला के खिला देती थी! जब मैं रोते-रोते पहली बार स्कूल गयी तो तुम सारा दिन मेरे साथ स्कूल मैं रही ताकि मैं सभी बच्चो के साथ घुलमिल जाऊं! जब एक बच्चे ने मुझे मारा था तो तुमने जाके उसके घरवालों से मेरे लिए झगडा किया!
माँ जब भी मुझे डर लगता था तो मैं तुम्हारे आँचल के पीछे चुप जाती थी, तब तुम्ही गोद मैं बैठाके मेरा डर भगाती थी! जब मेरे गणित मैं कम नंबर आने पर पापा ने मुझे डाटा था तो तुमने मेरा पक्ष लेकर उन्हें समझाया था! मुझे दिन-रात पढने मैं मदद की और मेरे बहुत अच्छे नंबर आये! माँ तुमने तो जादू कर दिया!
मुझे अब भी याद है माँ जब मेरी एक लड़के से दोस्ती को लेकर लोगो ने अफवाह उडाई थी तो सिर्फ तुमने ही मुझ पर विश्वास किया था! पापा को मेरी जल्दी शादी करने से रोकने के लिए तुमना कितना झगडा किया था!
तुम मेरी ढाल हो माँ! तुमना किसी की परवाह ना करते हुए मुझे पढने का और काम करने का मौका दिया! तुम मेरे लिए ईश्वर का वरदान हो माँ! तुम्हारे बिना तो मैं हो ही नहीं सकती थी!
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दिव्या गुप्ता जैन द्वारा प्रेषित
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
माँ को समर्पित कक्षा ५ के छात्र की एक कविता -- "माँ"
यह कविता कक्षा ५ के छात्र द्वारा लिखी गई है।
कविता
माँ
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माँ है कितनी भोली-भाली,
सबसे सुन्दर और निराली।
पहली गुरु माँ ही कहलाती,
नित लोरी में ज्ञान लुटाती।
प्रेम, स्नेह की बनकर डाली,
माँ करती हरदम रखवाली।
उच्च स्थान सदा वह पाता,
जो माता को शीश झुकाता।
माँ की सेवा जो नित करता,
उसे जगत् का सब सुख मिलता।
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शिवेंद्र पाठक
कक्षा - ५
महर्षि विद्या मन्दिर
उरई (जालौन) उ0प्र0
कविता
माँ
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माँ है कितनी भोली-भाली,
सबसे सुन्दर और निराली।
पहली गुरु माँ ही कहलाती,
नित लोरी में ज्ञान लुटाती।
प्रेम, स्नेह की बनकर डाली,
माँ करती हरदम रखवाली।
उच्च स्थान सदा वह पाता,
जो माता को शीश झुकाता।
माँ की सेवा जो नित करता,
उसे जगत् का सब सुख मिलता।
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शिवेंद्र पाठक
कक्षा - ५
महर्षि विद्या मन्दिर
उरई (जालौन) उ0प्र0
गुरुवार, 18 मार्च 2010
माता पिता की उंगली मैंने नहीं पकड़ी .... - सतीश सक्सेना
अविनाश वाचस्पति का यहाँ लिखा पहला लेख "माता पिता की उंगली श्रष्टिनियंता की होती है " का शीर्षक पढ़ कर ही आँखों में आंसू छलछला उठे, मैंने अपने बचपन में क्या गुनाह किया था कि परमपिता ने यह कठोर कदम उठाया ! शायद धर्म विवेचन में सिद्ध विद्वान् इसका उत्तर दे सकने में समर्थ हों पर जिस बच्चे से 3 वर्ष में माँ और ६ वर्ष में पिता छिन गए हों वह आज भी यह समझने में असमर्थ है ! शायद यह क्रूर घटना किसी को भी ईश्वरीय सत्ता पर से अविश्वास कराने के लिए काफी है...
आज के समय में ,जब मैं घर के ७० वर्षीय भूतपूर्व मुखिया को मोहल्ले की दुकान पर ही खड़े होकर, खरीदे गए सामान में से ,जल्दी जल्दी कुछ खाते हुए देखता हूँ तो मुझे अपने पिता याद आते हैं कि काश वे होते और मुझे उनकी सेवा का मौका मिला होता यकीनन वे एक सुखी पिता होते ! मगर मुझ अभागे की किस्मत में यह नहीं लिखा था ..
और क्या अपना खून देकर आपको सींचने वाली माँ की स्थिति कहीं ऐसी तो नहीं ? अगर हाँ तो निश्चित मानिए आपके साथ इससे भी बुरा होगा !
आज के समय में ,जब मैं घर के ७० वर्षीय भूतपूर्व मुखिया को मोहल्ले की दुकान पर ही खड़े होकर, खरीदे गए सामान में से ,जल्दी जल्दी कुछ खाते हुए देखता हूँ तो मुझे अपने पिता याद आते हैं कि काश वे होते और मुझे उनकी सेवा का मौका मिला होता यकीनन वे एक सुखी पिता होते ! मगर मुझ अभागे की किस्मत में यह नहीं लिखा था ..
और क्या अपना खून देकर आपको सींचने वाली माँ की स्थिति कहीं ऐसी तो नहीं ? अगर हाँ तो निश्चित मानिए आपके साथ इससे भी बुरा होगा !
बुधवार, 17 मार्च 2010
माता-पिता की ऊंगली सृष्टिनियंता की होती है (अविनाश वाचस्पति)
संस्कारों के वाहक
सबके भले के चाहक
मिलती है सबको इनकी
सुमधुर वाणी से राहत।
आहत होता है कोई
जब पाता है आहट
तो दुख विषाद दूर
जाता है पलटहट।
पाता है स्वयं को
माता की गोद में
पिता की छाया में
ऊंगली थामे उनकी
मानो सृष्टिनियंता ने
ऊंगली अपनी थमाई है।
पुत्री हो या हो पुत्र
सबमें कृष्ण का चित्र
मन में बसते हैं
निर्मल भाव संतान के लिए।
दिल में दोनों के मान लो
तनिक भी भेद होता नहीं
भाव समान होते हैं
अभाव उनका होता नहीं।
माता-पिता हों साथ
तो कोई रोता नहीं
खुश रहता है सारा जग
खुशियों का बहता सोता वहीं।
प्रसन्नता का भंडार
गुणों का आगार
लेता है संतान में
सब कुछ आकार।
माता-पिता की वास्तविकता को
कर लें हम सब मन से स्वीकार
बुराईयों का स्वयं ही होता जाएगा
प्रत्येक मन से प्रतिकार
कर लिया हो जब मन में
माता-पिता के पावन प्रेम को अंगीकार।
सबके भले के चाहक
मिलती है सबको इनकी
सुमधुर वाणी से राहत।
आहत होता है कोई
जब पाता है आहट
तो दुख विषाद दूर
जाता है पलटहट।
पाता है स्वयं को
माता की गोद में
पिता की छाया में
ऊंगली थामे उनकी
मानो सृष्टिनियंता ने
ऊंगली अपनी थमाई है।
पुत्री हो या हो पुत्र
सबमें कृष्ण का चित्र
मन में बसते हैं
निर्मल भाव संतान के लिए।
दिल में दोनों के मान लो
तनिक भी भेद होता नहीं
भाव समान होते हैं
अभाव उनका होता नहीं।
माता-पिता हों साथ
तो कोई रोता नहीं
खुश रहता है सारा जग
खुशियों का बहता सोता वहीं।
प्रसन्नता का भंडार
गुणों का आगार
लेता है संतान में
सब कुछ आकार।
माता-पिता की वास्तविकता को
कर लें हम सब मन से स्वीकार
बुराईयों का स्वयं ही होता जाएगा
प्रत्येक मन से प्रतिकार
कर लिया हो जब मन में
माता-पिता के पावन प्रेम को अंगीकार।
मंगलवार, 16 मार्च 2010
आज का दिन विशेष है "माता-पिता" के लिए
ब्लाग पर अपने आने के बाद प्रारम्भ के दिनों में हमारा प्रयास रहा कि कुछ अन्य ब्लागों से भी जुड़कर अपने लेखन को विस्तार दिया जाये। इस क्रम में हमने कुछ ब्लाग के संचालकों को अपनी ओर से निवेदन किया। ऐसे ब्लागों की संख्या चार-छह ही रही होगी, इनमें दो-चार ने तो हमारा निवेदन स्वीकार किया और हमें भी अपने साथ जोड़ा और कुछ ने तमाम सारी आपत्तियाँ मेल के द्वारा हमें दर्ज करा कर हमारे निवेदन को ठुकरा दिया।
जुड़ने-जोड़ने के क्रम में हमने कई ब्लाग की सदस्यता ली और बाद में कई ब्लाग से हमें सदस्यता ग्रहण करने का न्यौता मिला। इन पूरी गतिविधियों में हमने अपने आपमें एक बात महसूस की कि एक ब्लाग ‘माँ’ नाम से माँ के पावन रूप को सबके सामने रख रहा है तो एक ब्लाग ‘पिताजी’ के नाम से पिता के स्वरूप से हम सबको रूबरू करा रहा था।
दोनों ब्लाग को देखा और पसंद किया किन्तु एक खटका मन में लगा रहा कि क्यों नहीं माता और पिता को एकसाथ लाया गया? संसार में माता और पिता ही हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को पहचान देते हैं, नई उड़ान देते हैं। समाज के इस रिश्ते को अलग करने का अधिकार सिर्फ मौत के पास है और किसी के पास नहीं। ऐसी हमारी सोच है। इस सोच के कारण लगा रहता कि क्यों न एक ऐसा ब्लाग बनाया जाये जो माता-पिता को एक साथ ब्लाग पर सबके साथ चलने दे।
ब्लाग संसार के अपने इस छोटे से सफर में ब्लाग संसार को बहुत ही करीब से देखा। बहुत कुछ सीखा और जो सीखा उसमें से थोड़ा-थोड़ा सिखाने का प्रयास किया। आप सभी से मिले प्यार-स्नेह को सभी के साथ बाँटने का प्रयास किया। इस प्रयास में हमने भी कुछ सामूहिक ब्लाग बनाये और आप सभी के स्नेह से वे बराबर गति प्राप्त किये हैं। इस तरह के ब्लाग में साहित्यिक ब्लाग ‘शब्दकार’, अपने एहसास को हम सबके बीच लाने वाला ब्लाग ‘पहला एहसास’ प्रमुख है।
माता-पिता के रूप को एकसाथ ब्लाग पर लाने के लिए किसी विशेष दिन का इंतजार हमेशा बना रहा। आज संयोग से हमें उस दिन का एहसास हुआ। आज माँ के शक्तिशाली रूप माँ दुर्गा के प्रारम्भ होने का दिन है, नव सम्वतसर की शुरूआत। आज का दिन हमें बड़ा ही शुभ जान पड़ा इस ब्लाग की शुरूआत के लिए। कल रात को सोते समय ही विचार किया था कि सुबह उठने के बाद सभी को शुभकामनाएँ देने के साथ-साथ इस ब्लाग के बारे में भी जानकारी देते जायेंगे। सुबह से कुछ ऐसा रहा कि लोगों को शुभकामनाएँ देते रहे और आँसू भी बहाते रहे। इस ब्लाग की शुरूआत आज से कर दी है, बस आप के स्नेह और सहयोग की आवश्यकता रहेगी। इसे आप संयोग ही कह सकते हैं कि आज हमारे पिताजी की पुण्य तिथि भी है।
आमंत्रण भेजे जा रहे हैं कृपया स्वीकार कर ब्लाग को समृद्ध करें। धन्यवाद।
इस ब्लॉग से जुड़ने के इच्छुक महानुभाव हमें dr.kumarendra@gmail.com पर मेल भेज सकते हैं.
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