ब्लाग पर अपने आने के बाद प्रारम्भ के दिनों में हमारा प्रयास रहा कि कुछ अन्य ब्लागों से भी जुड़कर अपने लेखन को विस्तार दिया जाये। इस क्रम में हमने कुछ ब्लाग के संचालकों को अपनी ओर से निवेदन किया। ऐसे ब्लागों की संख्या चार-छह ही रही होगी, इनमें दो-चार ने तो हमारा निवेदन स्वीकार किया और हमें भी अपने साथ जोड़ा और कुछ ने तमाम सारी आपत्तियाँ मेल के द्वारा हमें दर्ज करा कर हमारे निवेदन को ठुकरा दिया।
जुड़ने-जोड़ने के क्रम में हमने कई ब्लाग की सदस्यता ली और बाद में कई ब्लाग से हमें सदस्यता ग्रहण करने का न्यौता मिला। इन पूरी गतिविधियों में हमने अपने आपमें एक बात महसूस की कि एक ब्लाग ‘माँ’ नाम से माँ के पावन रूप को सबके सामने रख रहा है तो एक ब्लाग ‘पिताजी’ के नाम से पिता के स्वरूप से हम सबको रूबरू करा रहा था।
दोनों ब्लाग को देखा और पसंद किया किन्तु एक खटका मन में लगा रहा कि क्यों नहीं माता और पिता को एकसाथ लाया गया? संसार में माता और पिता ही हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को पहचान देते हैं, नई उड़ान देते हैं। समाज के इस रिश्ते को अलग करने का अधिकार सिर्फ मौत के पास है और किसी के पास नहीं। ऐसी हमारी सोच है। इस सोच के कारण लगा रहता कि क्यों न एक ऐसा ब्लाग बनाया जाये जो माता-पिता को एक साथ ब्लाग पर सबके साथ चलने दे।
ब्लाग संसार के अपने इस छोटे से सफर में ब्लाग संसार को बहुत ही करीब से देखा। बहुत कुछ सीखा और जो सीखा उसमें से थोड़ा-थोड़ा सिखाने का प्रयास किया। आप सभी से मिले प्यार-स्नेह को सभी के साथ बाँटने का प्रयास किया। इस प्रयास में हमने भी कुछ सामूहिक ब्लाग बनाये और आप सभी के स्नेह से वे बराबर गति प्राप्त किये हैं। इस तरह के ब्लाग में साहित्यिक ब्लाग ‘शब्दकार’, अपने एहसास को हम सबके बीच लाने वाला ब्लाग ‘पहला एहसास’ प्रमुख है।
माता-पिता के रूप को एकसाथ ब्लाग पर लाने के लिए किसी विशेष दिन का इंतजार हमेशा बना रहा। आज संयोग से हमें उस दिन का एहसास हुआ। आज माँ के शक्तिशाली रूप माँ दुर्गा के प्रारम्भ होने का दिन है, नव सम्वतसर की शुरूआत। आज का दिन हमें बड़ा ही शुभ जान पड़ा इस ब्लाग की शुरूआत के लिए। कल रात को सोते समय ही विचार किया था कि सुबह उठने के बाद सभी को शुभकामनाएँ देने के साथ-साथ इस ब्लाग के बारे में भी जानकारी देते जायेंगे। सुबह से कुछ ऐसा रहा कि लोगों को शुभकामनाएँ देते रहे और आँसू भी बहाते रहे। इस ब्लाग की शुरूआत आज से कर दी है, बस आप के स्नेह और सहयोग की आवश्यकता रहेगी। इसे आप संयोग ही कह सकते हैं कि आज हमारे पिताजी की पुण्य तिथि भी है।
आमंत्रण भेजे जा रहे हैं कृपया स्वीकार कर ब्लाग को समृद्ध करें। धन्यवाद।
इस ब्लॉग से जुड़ने के इच्छुक महानुभाव हमें dr.kumarendra@gmail.com पर मेल भेज सकते हैं.
6 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर भावना के साथ इस ब्लॉग का शुभारंभ किया गया है। जिन पावन उद्देश्यों की पूर्ति के इसका निर्माण किया गया है उसमें हम सबको सफलता प्राप्त हो। नव संवत्सर की मंगलकामनाओं के साथ।
धन्यवाद डॉ कुमारेन्द्र !
आपके ब्लाग से जुड़कर अच्छा लगा , कुछ योगदान देने का प्रयत्न करूंगा ! इस पुनीत कार्य के लिए शुभकामनायें !
डॉ कुमारेन्द्र !
बेहद सराहनीय प्रयास है आपका ! आज ही एक पोस्ट "माता पिता " पर लिखी है मगर प्रकाशित करते करते रुक गया जब देखा कि आपका ब्लाग "माता पिता " अभी तक किसी ब्लाग अग्रीगेटर पर नहीं है , कृपया ब्लाग वाणी और गूगल आदि से सबंधित कर दें तभी कोई पोस्ट प्रकाशित होना उचित होगा ! कृपया अपना प्रोफाइल भी डाल दें जिससे लोग आपके बारे में जान सकें !
आशा है सुझाव को अन्यथा नहीं लेंगे !
सादर
सतीश सक्सेना
satish-saxena.blogspot.com
....एक खटका मन में लगा रहा कि क्यों नहीं माता और पिता को एकसाथ लाया गया? संसार में माता और पिता ही हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को पहचान देते हैं, नई उड़ान देते हैं। समाज के इस रिश्ते को अलग करने का अधिकार सिर्फ मौत के पास है और किसी के पास नहीं। ऐसी हमारी सोच है। इस सोच के कारण लगा रहता कि क्यों न एक ऐसा ब्लाग बनाया जाये जो माता-पिता को एक साथ ब्लाग पर सबके साथ चलने दे।....
बहोत ही बढिया सोच । कभी मात-पिता को अलग ...कल्पना करने से भी बडा दर्द होता है क्यों कि? मैंने अपनी "माँ" को खोया है पर उनके बिना मेरे "पिताजी" ओह....कैसे बताएं।
रोना आ गया आपकी पोस्ट पर।
aaj hindi me nahi likh pane ke karan mafi chahti hu .......mata -pita hamesha saath hi hone chahiye.....wo bhi ek dusare ke bina adhure hai.......
अच्छी शुरुआत की है अपने...
माता पिता दोनो एक दूसरे के पूरक है उनको साथ लाकर आपने एक मतवपूर्ण कदम उठाया है ..अच्छा लगा यहाँ आकर
सखी
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