संस्कारों के वाहक
सबके भले के चाहक
मिलती है सबको इनकी
सुमधुर वाणी से राहत।
आहत होता है कोई
जब पाता है आहट
तो दुख विषाद दूर
जाता है पलटहट।
पाता है स्वयं को
माता की गोद में
पिता की छाया में
ऊंगली थामे उनकी
मानो सृष्टिनियंता ने
ऊंगली अपनी थमाई है।
पुत्री हो या हो पुत्र
सबमें कृष्ण का चित्र
मन में बसते हैं
निर्मल भाव संतान के लिए।
दिल में दोनों के मान लो
तनिक भी भेद होता नहीं
भाव समान होते हैं
अभाव उनका होता नहीं।
माता-पिता हों साथ
तो कोई रोता नहीं
खुश रहता है सारा जग
खुशियों का बहता सोता वहीं।
प्रसन्नता का भंडार
गुणों का आगार
लेता है संतान में
सब कुछ आकार।
माता-पिता की वास्तविकता को
कर लें हम सब मन से स्वीकार
बुराईयों का स्वयं ही होता जाएगा
प्रत्येक मन से प्रतिकार
कर लिया हो जब मन में
माता-पिता के पावन प्रेम को अंगीकार।
10 टिप्पणियां:
संस्कारों के वाहक
सबके भले के चाहक
मिलती है सबको इनकी
सुमधुर वाणी से राहत।
आप की कविता के लिये तो तारीफ़ के शव्द भी छोटे पडते है, बहुत सुंदर कविता, मां बाप पर. आप का धन्यवाद
माता पिता के चरणो मे ही स्वर्ग है यह सत्य है .
माता पिता तो ईश्वर से भी पहले आते है...
माता-पिता की वास्तविकता को
कर लें हम सब मन से स्वीकार
Bahut sundar prernaa daayee rachana!
पाता है स्वयं को
माता की गोद में
पिता की छाया में
ऊंगली थामे उनकी
मानो सृष्टिनियंता ने
ऊंगली अपनी थमाई है।
आपके लेखन को सादर प्रणाम।
बहुत सुंदर , बहुत ही भावुक
बहुत सुन्दर भाव ...बहुत अच्छी रचना, पड़ाने के लिए धन्यवाद !
aapka dhanyavaad judne ke liye.
great parents for great children
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